चाबहार पर चाबुक! अमेरिका की छूट खत्म, भारत – No Port No Party

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन, ट्रेड एनालिस्ट

भारत के लिए चाबहार पोर्ट सिर्फ एक बंदरगाह नहीं — यह “भौगोलिक ब्रह्मास्त्र” है। 27 अक्टूबर को जब अमेरिकी छूट की मियाद खत्म हुई, तो साउथ ब्लॉक में सन्नाटा छा गया। अमेरिका ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया, लेकिन भारत ट्रंप प्रशासन को फिर से समझा रहा है — “देखो भाई, ये पोर्ट है, पोर्न नहीं… बैन मत करो!

भारत बोले — ‘चाबहार नहीं, तो अफगानिस्तान कहां से जाएं?’

अफगानिस्तान के लिए यह पोर्ट जीवन रेखा है। कराची के चंगुल से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है। भारत ने वहां एंबुलेंस, मेडिकल सप्लाई और “भरोसे का कार्गो” भेजकर दिखाया कि ये सिर्फ ट्रांजिट नहीं, ट्रस्ट का ट्रैक है।

अमेरिकी ‘डेडलाइन ड्रामा’ — 29 सितंबर से 28 अक्टूबर तक, अब?

पहले कहा गया था कि 29 सितंबर को छूट खत्म होगी, फिर थोड़ी मोहलत मिली। 27 अक्टूबर को फिर अलार्म बज गया — और अब ट्रंप टीम सोच रही है कि “भारत को छूट दें या फिर ट्वीट में भूल जाएं?” उधर दिल्ली का जवाब सीधा — “सैंक्शन में सेंक्शन नहीं चलेगा!

रूस और मिडल एशिया का नया खेल — चाबहार से ‘चाय-बिस्किट डिप्लोमेसी’

रूस, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान अब इस पोर्ट के दीवाने हैं।
क्योंकि सबको समझ आ गया है — चीन के Belt & Road में बेल्ट तो है, पर हवा नहीं। चाबहार उन्हें एक ओपन रूट विद इंडियन फ्लेवर देता है — बिना सेंसरशिप, बिना बेल्ट टाइट किए।

ईरान की उम्मीदें — “भारत आओ, बंदरगाह बचाओ”

तेहरान ने हाल ही में भारत और उज्बेकिस्तान के साथ मीटिंग कर कहा — “हमारा चाबहार, तुम्हारा कॉरिडोर!
अब भारत भी Eurasian Economic Union के साथ FTA की बात कर रहा है — ताकि “Oil, Trade और Rare Earth” सब कुछ सही ट्रैक पर रहे।

चाबहार सिर्फ समुद्र का रास्ता नहीं, बल्कि राजनीति का सबसे सटीक टेस्ट केस है — जहां एक तरफ ईरान इंतज़ार में है, दूसरी तरफ भारत “डिप्लोमैटिक डाइट” पर है — ना पूरी तरह अमेरिका से लड़ना चाहता, ना ईरान से दूरी बढ़ाना।

कहानी का सार?
जहां पोर्ट है, वहीं पॉलिटिक्स है। और जहां भारत है, वहां बैलेंस ज़रूर है!

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